ये कहानी है कलियुग के “रामण” की, जी हाँ सिर्फ “रावण” नहीं और सिर्फ “राम” भी नहीं, रामण – जिसमे श्रीराम भी है और रावण भी !
शास्त्रों में 3 युग के बारे में लिखा गया है किन्तु कलियुग के अवतार के बारे में डिटेल में कुछ नहीं लिखा गया है !
शास्त्रों के अनुसार भगवान् विष्णु ने तीनो युग में सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी त्रिगुणी अवतार लिए ! भगवान् विष्णु ब्रह्माण्ड को यही सन्देश देना चाहते थे कि “मेरे अहंकार और मेरे अवगुण को दूसरा कोई नहीं मार सकेगा, मेरे अंदर की बुराई को ख़त्म करने के लिए मुझे ही धरती पर अवतार लेना पड़ेगा” ! हर युग में श्रीमन नारायण ने सतोगुणी के साथ साथ रजो और तमो गुनी जन्म लेकर बहुत से अधर्म के काम किये !
सतयुग में रजोगुणी हिरणकश्यपु, और तमोगुणी हिरण्यकश्यप के रूप में नारायण ने अवतार लिए, श्री के दोनों अवतार ने अपने कुकृत्यों से धरती और पाताल में त्राहि त्राहि मचा दी ! कोई देवी – कोई देवता उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका ! अंत में स्वयं नारायण ने अपना सतोगुणी नरसिंह अवतार लेकर हिरणकश्यपु का और वराह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया ! सतयुग में अच्छे और बुरे दोनों अवतार लेकर, नारायण ने संसार को यही सन्देश दिया कि “मेरे अंदर की बुराइयों को मेरे अलावा कोई और नहीं मार सकता”
त्रेता युग में नारायण ने रजोगुणी रावण और तमोगुणी अहिरावण के रूप में जन्म लिया ! दोनों रूप में नारायण ने अहंकार और अधर्म की सारी सीमाएं लांघ दी ! रावण का रूप लेकर तो उन्होंने तीनो लोको के देवी देवताओं को परास्त कर ब्रह्माण्ड को अपने वश में कर लिया ! ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तिया मिलकर भी रावण और अहिरावण रूपी नारायण का कुछ ना बिगाड़ सकी !
बिगाड़ भी कैसे पाती? स्वयं नारायण बुराई के रूप में सामने जो खड़े थे, देवताओं और मनुष्यों को ये शिक्षा देने कि जब जब हमारे अंदर की बुराई जन्म लेगी उसे हमारे अलावा कोई और ख़त्म नहीं कर सकेगा ! जब रावण से सभी थक गए तब नारायण ने श्रीराम का अवतार लेकर रावण का वध किया ! त्रेता युग में भी नारायण का ब्रह्माण्ड को यही सन्देश था कि “मेरे अंदर के अहंकार को मत जगाना ! अगर मेरे अंदर का रावण जाग गया, फिर उसे मेरे अलावा कोई नहीं मिटा सकेगा !”
द्वापर युग में नारायण ने रजोगुणी शिशुपाल और तमोगुणी दन्तवक्र के रूप में जन्म लिया ! रजोगुणी शिशुपाल के रूप में तो नारायण ने अपने ही सत्य के स्वरुप भगवान् #shrikrishna का जी भर कर अपमान किया ! एक सीमा तक तो नारायण के सतोगुणी अवतार ने शिशुपाल कि अभद्रता को सहन किया, किन्तु अंत में शिशुपाल की हत्या कर अपने ही रजोगुणी अवतार को स्वतः समाप्त कर दिया ! चूँकि शिशुपाल रजोगुणी था इसलिए वो इस बात को सहन नहीं कर पा रहा था की उसीके सामने कोई कैसे उसके सत्य स्वरुप श्रीकृष्ण का सम्मान कर सकता है? इसी तरह हमारे अंदर रजोगुण भी हमारे सत्य के अहंकार को बर्दाश्त नहीं कर पाता है। इस जन्म में भी प्रभु श्रीमन नारायण का ब्रह्माण्ड को सन्देश यही था कि “बुराई हो या अच्छाई, दोनों हमारे ही अंदर है, और जबतक हम स्वयं नहीं चाहेंगे हम अपनी बुराइयां को समाप्त नहीं पाएंगे !”
तीनो युग जो बीत गए है, उनमे नारायण ने तीनो गुणों के लिए अलग अलग शरीर धारण किये ! दुनिया जानती है कि किस युग में नारायण कौनसे अवतार में आये और उस अवतार में उनका कौनसा गुण था ! जैसे राम के शरीर में सतोगुण लेकर आये तो रावण के शरीर में रजोगुण लेकर ! अहिरावण जिसे सिर्फ भोग विलासिता कि इच्छा थी, उसे किसी और चीज से कोई मतलब नहीं था, ऐसे अहिरावण के शरीर में नारायण ने तमोगुण को चरितार्थ किया ।
किन्तु अगर हम कलयुग की बात करे तो भगवान् ने सत्य, रजो और तमो तीनो गुणों को मनुष्य के एक ही शरीर में डाल दिया है !
अब कोई एक व्यक्ति ये नहीं कह सकता कि “मैं राम हूँ” या “रावण”। जो व्यक्ति हमारी इच्छा पूरी कर दे, वो हमारे लिए राम हो जायेगा, किसी कारण वश अगर कोई हमारी इच्छा पूर्ति ना कर सके तो हमे वो रावण से भी बदतर महसूस होगा। हम सामने वाले की इच्छा पूर्ति कर दे तो हम उसके लिए राम, और अगर किसी कारणवश हम उसकी इच्छा पूर्ति नहीं कर पाए तो उसके लिए तो हम साक्षात् रावण हो गए !
बड़े से बड़ा सम्बन्ध अब सिर्फ महत्वाकांक्षा की वजह से टूटते हुए देखा जा सकता है ! कल तक जो राम थे, स्वार्थ पूरा नहीं होने पर आज वही रावण से भी बुरे लगने लगे है ! आप दुनिया के लिए कितने भी बुरे हो, अगर आप सामने वाले की स्वार्थ सिद्धि कर दो, उसके लिए आप से बड़ा राम कोई नहीं !
अब ये भी तय नहीं है कि कब कोई आपको राम से रावण बनने पर मजबूर कर दे ! ये भी तय नहीं है कि हमारी कौन सी महत्वाकांक्षा और कौन सा स्वार्थ सामने वाले को राम से रावण बना दे ! अब तो राम भी हम ही है और रावण भी हम ही है !
अपनी कहानी के तो हम “राम” हो सकते है, किन्तु पता नहीं कितने लोगो की कहानी में हम “रावण ” भी है !
इदमस्तु

अब तो किसी के अंदर के रावण को ख़त्म करना बहुत ही आसान हो गया है, उसके रावण को ख़त्म करने के लिए अब उसकी हत्या करने की आवश्यकता नहीं है, बस आप सामने वाले की मन की मुराद पूरी कर दो उसके अंदर का रावण ख़त्म हो जायेगा और राम जाग जायेगा ! अगर आपको राम बने रहना है तो आपको अब सिर्फ अपने नहीं सामने वाले के मन का भी ध्यान रखना होगा ! अगर आप किसी का सम्मान नहीं कर सकते तो भूल कर भी किसी का अपमान मत कीजिये ! पता नहीं कब, आपके किसी कृत्य से सामने वाले का राम मर जाए और उसका रावण जाग जाए ! हम एक ऐसे युग में जी रहे है जहां स्वार्थ सिद्धि की वजह से रोजाना लाखो “राम” मर रहे है, और करोड़ों “रावण” भी पैदा हो रहे है !
“अब हम सिर्फ राम या सिर्फ रावण नहीं रह गए है ! ध्यान रहे, अगर कुछ लोगो के लिए हम राम है, तो कुछ लोगो के लिए हम रावण भी हो सकते है !”
अगर आप सुकून की जिंदगी जीना चाहते है, तो अपने स्वार्थ के लिए सामने वाले के अहंकार को ठेस मत पहुचाइए ! आपकी समस्या कितनी भी बड़ी हो, कितनी भी विकट हो, अपनी समस्या बहुत ही धैर्य, प्रेम और शांति से रखिये ! अब जमाना बदल गया है, अब आप सामने वाले को रावण बना कर अपना काम नहीं करवा सकते ! अगर गलती से भी आपके ऐटिटूड किव वजह से सामने वाले का अंदर का रावण जाग गया, तो आपके अंदर का राम उसके रावण को कभी भी मार नहीं सकेगा !
अब हर व्यक्ति को यही लगता है कि “दूसरे चाहे जो हो, लेकिन वो तो राम है !” आप खुद को राम समझते होंगे, किन्तु पता नहीं कितने लोग रोजाना आपके अंदर के रावण के दर्शन कर रहे है ! अब तो कोई हनुमान भी नहीं है, जो आपकी मदद को आएंगे ! अब 2 लोगो के बीच तीसरा व्यक्ति मदद करने नहीं, आपके संबंधों को ख़राब करने आता है !
इस दशहरा हम दूसरों में रावण ढूंढ़ने का प्रयास ना करे। समझदारी बस इसी में है कि हम अपने ऐटिटूड को सुधार कर सामने वाले के रावण को आराम से सोने दे, आप भी सुकून और शांति से जियोगे और दूसरे भी !
आज के लिए इतना ही, वरना आपको मेरे अंदर का रावण भी दर्शन देना शुरू कर देगा !
“Prarabdh – The Destiny” – “प्रारब्ध – संचित कर्म-फल-भोग” की तरफ से आपको एवं आपके परिवार को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !!!!!
इदमस्तु