Keshav Soni Spiritual Soul क्या कहते है शास्त्र, वेद और पुराण सावधान : “अजन्मे-शिशु” देते है “संतान-हीनता” का श्राप
Spiritual Soul क्या कहते है शास्त्र, वेद और पुराण

सावधान : “अजन्मे-शिशु” देते है “संतान-हीनता” का श्राप

  • मनुष्य की “उत्पत्ति” (Reproductive System) का आधार क्या है?
  • संतान उत्पत्ति का स्कंदमाता से क्या सम्बन्ध है?
  • बलात्कार के केस में कोई भी न्यायालय “गर्भपात” की अनुमति क्यों नहीं देती? 
  • कैसे काम करता है भगवान् कार्तिकेय का “अजन्मी-संतान” का श्राप?

मनुष्य का Reproductive System का आधार क्या है?

संसार में होने वाली हर घटना, उस परमेश्वर की अलौकिक लीला है ! ये घटनाएं पहले ईश्वर के मन में जन्म लेती है, उसके बाद ये तय होता है की इन घटनाओं को कौन और कैसे अंजाम देगा ! इन लीलाओं को अंजाम देने के “उदेश्य” से ही मनुष्य का जन्म होता है, जीवन का यही उद्देश्य हमारा “Purpose of Life” होता है ! ईश्वर की इच्छा को ही “संतान उत्पत्ति” की शुरुवात माना गया है ! ईश्वर की प्रेरणा से ही युगल (चाहे वो विवाहित हो या अविवाहित) दोनों के मन में संतान उत्पत्ति के विचार उत्पन्न होते है और फिर प्रेरित युगल (inspired couple) अलग अलग अवस्थाओं (चाहे आप उसे उचित अवस्था कहे या अनुचित) में अपनी भावी संतान की उत्पत्ति के लिए समागम (intercourse) करते है !

“संतान उत्पत्ति” से क्या सम्बन्ध है स्कंदमाता का?

तारकासुर जानता था की महादेव ने अपने जीवन काल में कभी किसी स्त्री के साथ समागम नहीं किया है, और चूँकि महादेव ब्रह्मयोगी है, तो महादेव के बीज को कोई भी स्त्री धारण नहीं कर सकेगी, इस विचार से तारकासुर ने “शिवपुत्र” के हाथो अपनी मृत्यु का वरदान मांग लिया था !

जब सभी देवताओं ने महादेव से उनके और पार्वती के पुत्र के लिए प्रार्थना की तो महादेव ने पार्वती के साथ समागम करने का देवताओं का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया ! किन्तु जब देवताओं ने महादेव को बताया कि तारकासुर का वध करने के लिए भगवान् विष्णु ने योजना बनाई है जिसके अनुसार महादेव को पार्वती के साथ समागम करने की कोई आवश्यकता नहीं है, तो महादेव ने देवताओं के प्रस्ताव को स्वीकार कर भगवान् विष्णु की योजनानुसार अपना बीज एक “हवन कुंड” में डाल दिया। उस युग में “हवन कुंड” ऋषि-मुनियों के लिए प्रयोगशाला की तरह हुआ करती थे, जहां वे नए नए प्रयोग करके कई चीजों को उत्पन्न किया करते थे। महादेव के पुत्र कार्तिकेय का जन्म ऐसे ही एक महान प्रयोग से हुआ था, जिसके लिए भगवान् विष्णु ने इस प्रयोगशाला में IVF प्रोसेस की तरह 6 जीवात्माओं को एक शरीर में जीवन दिया था।

महादेव का बीज बहुत ही गर्म होने की वजह से पार्वती उस बीज को अपने गर्भ में धारण नहीं कर सकती थी, इसलिए विष्णु ने 6 गैर मानवीय कृतिकाओं (अप्सराओं) को बुलाया, जो इस धरती की नहीं थीं और जिनकी प्रजनन-क्षमता बहुत ही उच्च स्तर की थी ! भगवान विष्णु के आदेश से उन कृतिकाओं ने उस “हवन कुंड” से महादेव के बीज को अपने गर्भ में धारण कर लिया ! उन कृतिकाओं ने करीब तीस माह (ढाई वर्ष तक) उस बीज को अपने गर्भ में धारण रखा, उसके बाद बीज में जीवन आकार लेने लगा और 6 भ्रूण विकसित हो गए ।

कृतिकाएं (अप्सराएं) एक आयाम पर ज्यादा समय तक नहीं रहती थी, अक्सर वो एक आयाम से दूसरे आयाम में भ्रमण ही करते रहती थीं ! चूँकि वो अमानवीय थी इसलिए उनमें सृष्टि के प्रति जिम्मेदारी की भावना भी नहीं होती थी। तो जब कृतिकाओं को लगा की यह बीज उनके लिए कुछ ज्यादा ही गर्म है और भ्रूण भी आवश्यकता से ज्यादा समय ले रहा है जिसकी वजह से वो इसे ज्यादा समय तक अपने गर्भ में धारण नहीं कर पाएंगी, इसलिए उन्होंने उन अविकसित भ्रूण को अपने गर्भ से निकाल कर फेक दिया और किसी दूसरे आयाम में चली गईं।

भगवान विष्णु ने जब इन 6 अविकसित भ्रूणों को धरती पर पड़े देखा, तो उन्हें बहुत क्रोध आया, किन्तु उन भ्रूणों को बचाना भगवान विष्णु की  प्राथमिकता थी, विष्णु जानते थे कि पार्वती स्वयं महादेव की किसी संतान को जन्म नहीं दे सकती है इसलिए अब इन अविकसित भ्रूणों को पार्वती व्यर्थ नहीं जाने देंगी !

भगवान् विष्णु ने पार्वती को तारकासुर के वध और उन भ्रूणों के बारे में विस्तार से बताया ! धरती पर पड़े अविकसित भ्रूणों को देख कर पार्वती के मातृत्व की भावना जाग उठी, उन्होंने भगवान् विष्णु को विश्वास दिलाया कि वो उन अविकसित भ्रूणों को बचाने और उनके विकास की जिम्मेदारी लेंगी, पार्वती उन 6 अल्पविकसित भ्रूणों को कमल के पत्तों में लपेटकर अपने निवास पर ले आई !

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे पार्वती को ये आभास होते जा रहा था कि उन भ्रूणों को अलग-अलग बचाने की संभावना बहुत ही कम है, किन्तु उन्हें ये भी एहसास हुआ कि उन 6 भ्रूणों में 6 अलग अलग अद्भुत शक्तियां हैं। पार्वती ने सोचा, ‘अगर ये सभी गुण या शक्तियां किसी एक बालक में हो, तो वह बालक कितना अद्भुत होगा।’ इसी विचार से पार्वती ने अपनी तांत्रिक शक्तियों से उन 6 नन्हें भ्रूणों को एक साथ कमल के पत्ते में बांध कर एक शरीर में समाविष्ट कर दिया ! अब पार्वती की निगरानी में विकसित हो रहे उस बालक का शरीर तो एक था किन्तु उसके 6 मुख और 12 हाथ थे ! और इस तरह पार्वती की जिम्मेदारी भरी मेहनत से एक अद्भुत क्षमता वाले बालक ने जन्म लिया । 8 साल की उम्र में ही उस बालक ने तारकासुर का वध कर एक अजेय योद्धा बन गया और भगवान् विष्णु ने उस बालक को देवताओं का सेनाध्यक्ष बना कर “कार्तिकेय” नाम दिया !

विधि के विधान के अनुसार तारकासुर के वध के “उद्देश्य” से ही महादेव के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ था ! महादेव के पुत्र कार्तिकेय का जन्म ब्रह्माण्ड की किसी भी चुनौती से कम नहीं था ! इसलिए कार्तिकेय के जन्म की इस पूरी प्रक्रिया को भगवान् विष्णु बहुत ही करीब से देख रहे थे ! संतान के अभाव में पार्वती का जो मातृत्व अबतक दबा हुआ था इन भ्रूणों को बचाने के लिए उसी मातृत्व ने असंभव कार्य को संभव बना दिया था, पार्वती ने जिस तरह हर चुनौती का सामना करके उस बालक को जन्म लेने में अपनी जिम्मेदारी निभाई थी वो अद्भुत और सराहनीय थी !

इसलिए भगवान् विष्णु ने पार्वती को एक और जिम्मेदारी सौंप दी कि अब भविष्य में जब किसी भी किसी मनुष्य का जन्म होगा उसके जन्म का “उद्देश्य” सबसे पहले पार्वती को बताया जायेगा ! पार्वती स्वयं ये तय करेंगी कि उस मनुष्य का जन्म किस युगल (couple) के समागम से, कब, कहाँ और कैसे होगा ?

कार्तिकेय का एक नाम “स्कन्द” भी था ! स्कन्द के जन्म की वजह से पार्वती को “स्कंदमाता” नाम से पुकारा जाने लगा ! स्कन्द-पुराण के अनुसार स्कंदमाता ही तय करती है कि ईश्वर के “उद्देश्य” को पूरा करने के लिए किस प्राणी की उत्पत्ति किस युगल (couple) के समागम (intercourse) से, होगी, कब होगी, कहाँ और किन परिस्थितियों में होगी ! जब भी कोई युगल अपने मन में संतान उत्पत्ति की कल्पना करना शुरू करते है उसी क्षण से उस संतान के प्रति स्कंदमाता की जिम्मेदारी शुरू हो जाती है ! संतान उत्पत्ति की कल्पना के तुरंत बाद स्कंदमाता उस संतान के लिए एक योग्य आत्मा का चयन कर उस आत्मा को तब तक अपने पास संचय करके रखती है जब तक वो संतान जन्म नहीं ले लेती !

चूँकि “संतान उत्पत्ति” का सीधा सम्बन्ध स्कंदमाता से होता है, इसलिए “संतान उत्पत्ति” की चाह रखने वाले युगल को अपनी संतान की उत्पत्ति की जिम्मेदारी स्कंदमाता पर छोड़ देना चाहिए जिससे वो आपकी संतान के लिए उत्तम और योग आत्मा का चयन कर उसे संचय कर ले !

बलात्कार के केस में न्यायालय गर्भपात की अनुमति क्यों नहीं देती? 

जिस संतान के जीवन का “उद्देश्य” उस ईश्वर की इच्छा को पूरा करना होता है, ईश्वर की प्रेरणा से ही युगल (चाहे वो विवाहित हो या अविवाहित) दोनों के मन में अपनी संतान उत्पत्ति के विचार उत्पन्न होते है और फिर ईश्वर से प्रेरित युगल (inspired couple) अलग अलग अवस्थाओं में (चाहे उस अवस्था को आप उचित कहे या अनुचित) अपनी भावी संतान की उत्पत्ति के लिए दोनों समागम (intercourse) करते है ! ईश्वर के “उद्देश्य” को पूरा करने के परम-उद्देश्य से उत्पन्न हुई संतान को समाज अपने नियमों के आधार पर तय करता है की उसकी उत्पत्ति उचित तरीके से हुई है या अनुचित? वो वैद्य संतान है या अवैद्य?

बलात्कार को दुनिया का हर देश और हर सम्प्रदाय अधर्म और अनैतिक मान कर अपराध की श्रेणी में रखता है ! किन्तु संसार की हर न्यायालय बलात्कार से पैदा हुई संतान को परमेश्वर की “उत्पत्ति की इच्छा” मानती है, यही कारण है कि पीड़िता चाहे हिन्दू/मुस्लिम/सिख/ईसाई किसी भी धर्म या प्रजाति की हो, सर्वोच्च न्यायालय “परमेश्वर की उत्पत्ति के सिद्धांत” को ही आधार मानकर किसी भी अवस्था में पीड़िता को “गर्भपात” की अनुमति नहीं देती !

पीड़िता की उम्र और उसकी मानसिक और शारीरिक अवस्था को भी “परमेश्वर की उत्पत्ति के सिद्धांत” से ऊपर महत्त्व नहीं दिया जाता ! जिस संतान की उत्पत्ति उस “परमेश्वर” ने एक बार तय कर उसके लिए आत्मा का चयन कर लिया, उस संतान की उत्पत्ति को रोकने का अधिकार परमेश्वर के अलावा इस ब्रह्माण्ड में किसी के पास नहीं है !

भगवान् कार्तिकेय क्यों देते है अजन्मी-संतान” का श्राप ?

कार्तिकेय ने 3 साल तक विपरीत परिस्थितियों में गर्भ में रहकर संघर्ष किया था है ! गर्भ में होने वाली हत्या को उन्होंने अनुभव किया था, भगवान् विष्णु ने किसी भी गर्भ में पल रहे भ्रूण कि सुरक्षा कि जिम्मेदारी भगवान् कार्तिकेय को दी है ! भगवान् कार्तिकेय बर्दाश्त नहीं कर पाते है कि किसी अबोध-संतान की गर्भ में हत्या हो चाहे वो गर्भ काल्पनिक हो या वास्तविक ! किसी भी कारणवश अगर किसी शिशु कि गर्भ में हत्या होती है तो कार्तिकेय उस “अजन्मी-संतान” की हत्या के समस्त दोषियों को “संतान-हीन” का श्राप देते है ! ब्रह्माण्ड की कोई शक्ति/देव/दानव/महाराज/पंडा/तांत्रिक ऐसे दोषियों को भगवान कार्तिकेय के “संतान-हीनता” के श्राप से बचा नहीं सकता !

यदि आप किसी संतान की कामना या कल्पना शुरू करते है तो इस बात का ध्यान रखिये कि विधाता आपकी उस संतान के जन्म की प्रोसेस शुरू कर चूका है, उस शिशु के लिए आपकी चाहत के अनुसार एक योग और उत्तम आत्मा का चयन किया जा चूका है और अब उस आत्मा को आपके शिशु के शरीर के लिए संचय कर रख लिया गया है ! एक बार आत्मा के संचय के बाद उस आत्मा और उस भ्रूण (वास्तविक या काल्पनिक भ्रूण) की रक्षा की जिम्मेदारी स्कंदमाता और कार्तिकेय की होती है !

एक बार उस शिशु के लिए आत्मा के संचय के बाद उस भ्रूण/शिशु की रक्षा का दायित्व आपका होता है ! अगर दुनिया की शीर्ष न्यायलय भी बुरी से बुरी अवस्था में गर्भपात की अनुमति नहीं देती तो हमारा समाज, हमारे परिजन और स्वयं हम भी उस शिशु को ABORT नहीं कर सकते ! किन्तु अगर कोई ऐसा करता है तो फिर उसे कार्तिकेय और स्कंदमाता के श्राप से कोई नहीं बचा सकता ! 

राधा और उसके परिवार को मिला था कार्तिकेय और स्कंदमाता का श्राप

किसी भी अनचाहे शिशु का गर्भपात करके हत्या करना हमें जितना आसान लगता है, इसके परिणाम कितने घातक होते है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि राधा-कृष्ण के “काल्पनिक संतान” की गर्भ में हत्या के लिए स्कंदमाता और कार्तिकेय ने राधा और उसके परिवार को भी “संतान-हीनता” का श्राप दे दिया था ! 

कृष्ण ने राधा के साथ लगभग 11 वर्ष और 7 महीने तक रास-लीला रचाई थी ! रास लीला के दौरान दोनों अपनी भावी संतान की कल्पना भी किया करते थे, उनकी कल्पना थी कि कृष्ण के बाद इस जगत का लालन पालन उनकी संतान करेगी ! किन्तु इतने लम्बे समय तक रास लीला करने के बावजूद राधा और कृष्ण की कोई संतान नहीं हुई ! और एक समय ऐसा भी आया जब दोनों एक दूसरे से पृथक हो गए ! 

बृषभान ने राधा का विवाह अयान कर दिया और अपना राज्य अयान को सौंप दिया, अब अयान बृज का राजा और राधा बृज की रानी हो गयी ! लेकिन राधा को अयान से भी कोई संतान नहीं मिली ! राधा जब 80 वर्ष की हुई और उसे भौतिक संसार से मोह हो गया तब राधा को यह एहसास हुआ की उसका अल्टीमेट डेस्टिनेशन (वास्तविक गंतव्य) कृष्ण की आत्मा में विलीन होना है और राधा अपना सबकुछ छोड़ कर अपने अल्टीमेट डेस्टिनेशन से मिलने द्वारिका चली गई !

राधा द्वारिका में करीब 1 वर्ष तक कृष्ण की चौखट पर बैठी रही, कृष्ण वहां से रोजाना निकलते लेकिन वो कभी भी राधा की तरफ ध्यान नहीं देते ! जब राधा के देह त्यागने का समय निकट आ गया तब एक दिन कृष्ण वहाँ रुके और उन्होंने राधा की वृद्ध काया को अपनी गौद में जगह दी ! अपने अंतिम समय में कृष्ण को इतना करीब पाकर राधा भावुक हो गयी, इसने कृष्ण से बहुत सवाल किये, किन्तु उन सवालों में उसका एक सवाल यह भी था की “हम दोनों ने इतने वर्षों तक रास लीला की, किन्तु तुमने मुझे कोई संतान नहीं दी, क्यों ?” तब कृष्ण ने गंभीर होते हुए राधा को बताया कि “मैं जानता था राधिके, एक दिन तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी, इसलिए मैंने तुम्हारे साथ कभी भी समागम नहीं किया, जब हमारे बीच समागम ही नहीं हुआ, तो संतान कैसे होती?”

राधा ने कृष्ण को याद दिलाया कि “जब हम रास लीला करते थे तब हम अपने पुत्र की कल्पना किया करते थे, जो तुम्हारे बाद इस ब्रह्माण्ड का नाथ होता, क्या तुम्हे उसका भी ध्यान नहीं रहा कृष्ण?” तब कृष्ण ने राधा को बताया कि “यह सत्य है कि हमने हमारे भावी पुत्र की कल्पना की थी राधिके, और संतान की कल्पना करते ही उस पुत्र के जन्म की योजना भी शुरू हो चुकी थी, किन्तु तुम्हारे परिजन और समाज के प्रबुद्धजनों की वजह से हम पृथक हो गए और हमारी संतान जन्म नहीं ले सकी !

हमारे पृथक होने से कुछ भी विधिनुसार नहीं हो सका, जिसकी वजह से कार्तिकेय ने बृषभान और महापंडित उग्रपत दोनों के सम्पूर्ण परिवार को “संतान-हीनता” का श्राप दे दिया ! कार्तिकेय के श्राप की वजह से तुम्हारे पिता बृषभान और महापंडित उग्रपत दोनों के वंश में कभी किसी संतान की उत्पत्ति नहीं हुई ! इसी तरह तुम्हे मुझसे दूर करने का महा पाप करने के लिए तुम्हारे पति “अयान” और उसके सम्पूर्ण वंश को भी कार्तिकेय का श्राप मिला और उसीकी वजह से महापंडित उग्रपत और उसके बेटे अयान (राधा के पति) ना केवल संतान-हिन् हुए वरन नपुंसक भी हो गए ! स्कंदमाता के श्राप से तुम्हारा “गर्भ-कोष” भी प्रभावित हुआ और तुम जीवन-काल के लिए “रजोहिन” हो गयी जिसकी वजह से तुम्हे भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई और तुम्हारा नाम कृशोदरी पड़ा !

कृष्ण ने राधा को बताया की “आने वाले समय में जब भी कोई इस तरह किसी अबोध शिशु की हत्या करेगा, उसे हमारे इस परिणाम का स्मरण कराया जायेगा ! 

धरती पर मनुष्य 3 तरह से आते है
  • आव्हान करने पर – जब आप किसी विशेष प्रयोजन से संतान की उत्पत्ति की कल्पना कर ईश्वर से उसका आव्हान करते हो
  • ईश्वर की देन – आपको संतान की चाह तो है किन्तु उस संतान के लिए आपका कोई प्रयोजन नहीं है
  • ईश्वर का प्रयोजन – जब ईश्वर अपने किसी प्रयोजन को पूरा करने के लिए आपको धरती पर भेजता है
  • ऐसा भी होता है की आप किसी कारण से संतान नहीं चाहते और ईश्वर आपको संतान दे रहा हो तो आप उसका विरोध ना करे, यक़ीनन ऐसी संतान से ईश्वर का कोई विशेष प्रयोजन होता है,
अबोध शिशु की हत्या – कैसे कैसे ?
  • संतान का गर्भपात (abortion) केवल शारीरिक तौर पर नहीं होता, संतान अगर आपकी कल्पनाओं के अस्तित्व में है तो अपनी कल्पना से उस संतान को मिटाना भी गर्भपात की श्रेणी में आता है
  • किसी दूसरे व्यक्ति की कल्पना से उसकी संतान को मिटाना भी उस अबोध-संतान की हत्या का दोष है
  • कुछ विवाहित युगल किसी कारणवश गर्भ में पल रहे अबोध-संतान को गर्भपात करके मिटा देते है
  • कभी कभी समाज के प्रबुद्धजन और परिजन प्रेमी-युगल को पृथक कर उनकी कल्पना में पल रहे उनकी अबोध-संतान का गर्भपात कर देते है
  • अनैतिक तरीके से किये समागम की वजह से गर्भ होने पर ABORTION करवा लेना भी उस अबोध की हत्या के बराबर है

किसी भी उचित या अनुचित कारण से अगर किसी अबोध-शिशु की हत्या होती है तो भगवान् कार्तिकेय उस हत्या से जुड़े लोगो को “संतान-हीनता” का श्राप दे देते है ! ब्रह्माण्ड की कोई शक्ति/देव/दानव/महाराज/पंडा/तांत्रिक ऐसे दोषियों को भगवान कार्तिकेय के श्राप से नहीं बचा सकता !

कैसे पता करे की आप या आपके आस पास कोई “संतान-हीनता” के श्राप से पीड़ित है?

अगर आपके परिवार या आस पास कोई संतान-सुख से वंचित है तो निश्चित ही वो किसी अजन्मे-शिशु की हत्या के श्राप से पीड़ित है, भगवान कार्तिकेय के श्राप से :

  • उस व्यक्ति की वंश-वृद्धि रुक जाती है
    • परिजन कितना भी ज़िद्द करे, उस व्यक्ति की संतान-उत्पत्ति की इच्छा ही नहीं होती है
    • संतान की इच्छा हो तो भी उसे गर्भ नहीं ठहरता
    • अगर उसे गर्भ ठहर भी जाए तो भी बार-बार गर्भपात हो जाता है
    • उसकी संतान की उसके गर्भ में ही अकारण मृत्यु हो जाती है
    • अगर संतान पैदा हो भी गयी तो विकृत या विक्षिप्त पैदा होती है
    • उसकी संतान जिंदगी भर किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित रहती है
    • उसकी संतान कुसंगत में पड़कर स्व-विनाश की ओर चली जाती है 
    • उसके संतान की अल्प-आयु में ही किसी दुर्घटना में दुर्दांत तरीके से मृत्यु हो जाती है
    • उसकी संतान अपने माता-पिता को त्याग देती है

किसी भी अबोध-शिशु की उसकी उत्पत्ति से पहले हत्या कर देना एक जघन्य अपराध है ! चाहे आपके पास कितना भी उचित कारण क्यों ना हो, किन्तु एक बार उस विधाता ने जिस संतान को जन्म देने की प्रक्रिया शुरू कर दी, उसके बाद “उत्पत्ति” की उस प्रक्रिया को रोकना ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा अपराध होता है, दोषियों को ऐसे अपराध की सजा निश्चित मिलना ही चाहिए  ! विधाता की “संतान-उत्पत्ति की इच्छा” को रोकने का अधिकार ब्रह्माण्ड में किसी के पास नहीं है

इदमस्तु

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