
हम सभी ये जानते है की अभिमन्यु ने सुभद्रा के गर्भ में रहते अपने पिता से चक्रव्यूह भेदना सीख लिया था !
वैज्ञानिक-अनुसंशान से इतना तो साफ़ हो चूका है कि गर्भ-धारण के 4 माह की अवधी के बाद से गर्भस्थ-शिशु को गर्भ के बाहर की दुनिया का एहसास होने लगता है ! ना केवल वो गर्भ के बाहर की आवाजों को सुन सकता है, बल्कि अपनी माता की भावनाओं को भी महसूस कर सकता है ! किन्तु हमारा मस्तिष्क गर्भ के भीतर होने वाले अनुभवों की स्मृति को मिटा देता है !
इतिहास में अभिमन्यु के साथ एक और ऐसा व्यक्ति था जिसने अपने मस्तिष्क को गर्भावस्था के दौरान हुए अनुभवों को मिटाने नहीं दिया ! ऋषि शुकदेव का नाम आप ने बहुत बार सुना होगा किन्तु उनके बारे में हम आज वो बताने जा रहे है जो आप ने कभी नहीं सुना होगा ! अभिमन्यु की ही भांति शुकदेव ने भी गर्भावस्था के दौरान ज्ञान हासिल किया !
ऋषि शुकदेव के जन्म की कथा बहुत ही रोचक है। जब भगवान शिव पार्वती को अमर होने की कथा सुना रहे थे, इस दौरान पार्वती सो गई। शिव की कथा एक तोते ने सुन ली। जब शिव ने देखा कि पार्वती सो चुकी हैं और तोता कथा सुन रहा है, तो शिव उस तोते को मारने के लिए दौड़े। तोता उड़ते उड़ते ऋषि व्यास के आश्रम पहुंचा। उसने व्यास जी से मदद मांगी, चूँकि कथा सुनते सुनते तोता त्रिकालदर्शी हो चुका था, उसे यह पता चल गया कि अगर वो व्यास ऋषि की पत्नी ऋतु की कोख में शरण ले ले तो वो बच सकता है !
ऋषि व्यास ने अपनी दिव्य-शक्ति से उस तोते को अपनी पत्नी के गर्भ में स्थापित कर दिया ! जब वो तोता गर्भ में था, ऋषि व्यास अपनी पत्नी को शास्त्रों से गुप्त रहस्यों की जानकारी प्रदान करना आरम्भ कर दिया । बालक ने जब जन्म लिया तो उसका नाम रखा गया ‘सुखदेव’। ऋषि शुकदेव अपनी माता की कोख में 12 साल रहे। वह इसलिए जन्म नहीं लेते थे ताकि जब वह बाहर आएं तो संसार के नियम के अनुसार माया उन्हें सब ज्ञान भुला ना दे। 12 वर्ष की छोटी- सी उम्र में ही वह सभी शास्त्रों के श्लोकों के ज्ञाता बन गये।
पिता के द्वारा दी गई दिव्य शिक्षाओं और माता के गर्भ में हरी नाम का जप करने की वजह से शुकदेव गर्भ-योगेश्वर कहलाए। उनके सामान दूसरा श्रेष्ठ वैराग्य वान नहीं हुआ। शुकदेव अपने तप, भक्ति योग के बल से बैकुंठ पहुंच गए !
- केशव “श्री” इदमस्तु