Spiritual Soul क्या कहते है शास्त्र, वेद और पुराण

अथर्व वेद के अनुसार – ईश्वरीय शक्तियां कैसे काम करती है?

एपिसोड – 23

ईश्वरीय शक्तियां कैसे काम करती है?

कैसे निकाले अपना रुका/अटका हुआ पैसा ?

अथर्व वेद संहिता के अनुसार – अचूक उपाय

आप ने किसी व्यक्ति के बुरे वक़्त में उसपर भरोसा करके उसे पैसा देकर उसकी सहायता की है, लेकिन अब आपके बुरे वक़्त में वो व्यक्ति आपका पैसा वापस नहीं लौटा रहा है ! स्वाभाविक है, आपको उस व्यक्ति से नफरत हो रही होगी, उसके प्रति आपके मन में क्रोध पैदा हो रहा होगा ! ऐसी स्थिति में अपना पैसा निकालने के लिए आपको क्या करना चाहिए ? आप ने तो बुरे वक़्त में उसकी सहायता करके पुण्य का ही काम किया था, फिर आपके बुरे वक़्त में वो क्यों ऐसा कर रहा है ?

आज के इस आर्टिकल में “अथर्व वेद” के “कर्मा” के सिद्धांतों को समझते है ! “अथर्व वेद” के अनुसार आप जैसे कर्म करते है, आपके कर्म का फल आपके कर्मों के आधार पर ही मिलता है !

ईश्वर का सीधा सम्बन्ध आपकी “भावनाओं” से होता है, आपकी “क्रिया/कृत्य / action” से नहीं ! आप जब भी किसी काम को शुरू करने का विचार करते है, उस क्षण (ध्यान रखिये जब काम शुरू कर रहे होते है उस क्षण) ईश्वर आपकी भावनाओं को पढ़ रहा होता है ! काम को शुरू करते वक़्त आपकी भावना जैसी होती है, उसके आधार पर ईश्वर का “कर्मा” का सिद्धांत काम करना शुरू कर देता है ! और उस कर्म का फल भी उसी आधार पर तय होता है !

आप ने किसी व्यक्ति के “बुरे वक़्त” में उसे पैसा देकर उसकी सहायता की ! उसे पैसा देने का विचार करते वक़्त आपके मन में यह भावना थी की “उस व्यक्ति की समस्या का समाधान हो जाए” ! अर्थात काम शुरू करते वक़्त “उस व्यक्ति की भलाई” की भावना आपके मन में थी ! इसलिए ईश्वर ने सिचुएशन को उस व्यक्ति के पक्ष में बदल दिया और आप ने उस व्यक्ति को इसलिए धन दे दिया ! उस व्यक्ति के लिए आपके मन में प्रेम था विश्वास था और आप की आत्मा चाहती थी की वो व्यक्ति उस बुरे वक़्त से, उस समस्या से बाहर आ जाये इसलिए ईश्वर ने ऐसे जतन किये जिससे वो व्यक्ति समस्या से बाहर आ गया और प्रेम बढ़ गया ! अगर आपके मन में कटुता होती तो आप से उसे पैसे मिलते? नहीं ना? आप ने अपने मन में प्रेम का बीज बोया तो प्रेम का वृक्ष पैदा हुआ !

आप ने जिस भावना से उस व्यक्ति की सहायता की, उसकी मदद करके जो “कर्म” आप ने किये उन कर्मो का फल उस व्यक्ति की समस्या का समाधान होते ही पूरा हो गया, आपका कर्म उसकी सहायता करने तक ही थे, जिसका फल उस व्यक्ति को मिला आपको नहीं !

Edamastu

अब नियत तिथि निकल जाने के बाद भी वो व्यक्ति आपकी धनराशि नहीं लौटा रहा है, आपको अपने धन की बहुत आवश्यकता है और आप चाहते है की आपका धन आपको समय पर मिल जाए

याद कीजिये जब उसे धन की आवशयकता थी उसका व्यवहार आपके प्रति कैसा था? उदार / विनयपूर्वक रहा होगा लेकिन आपके स्वभाव में अधिकार के भाव का अहंकार होगा ! चलिए मान लेते है की ये अहंकार का आपको अधिकार है क्योंकि वो पैसा आपका है ! लेकिन ईश्वर किस व्यक्ति की प्रार्थना को जल्दी स्वीकार करेगा, उदार की या अहंकारी की? अगर आप ईश्वर होते तो आप किसकी सहायता पहले करते?

जिससे आपको धन वापस चाहिए वो तो पहले ही समस्या में था, तो निश्चित ही उसके पास सरप्लस में फण्ड तो नहीं होंगे, वो आपको देने के लिए कही से अरेंज कर रहा होगा, उसे किसी से पैसा मिलेगा या नहीं ये कैसे तय होगा? आपकी उसके प्रति जो भावना होगी उसके आधार पर ईश्वर तय करेंगे की उसे आपको देने के लिए व्यवस्था होनी चाहिए या नहीं? चूँकि आप ने उसकी सहायता करके जो पुण्य कर्म अर्जित किये थे, इसलिए ईश्वर पहले आपके ह्रदय की सुनेगा ! आपके मन में उस व्यक्ति के लिए जो भावना होगी उसमे वृद्धि करेगा !

अब अगर वो व्यक्ति आपको टाइम से पैसा नहीं लौटा पा रहा है तो आपके मन में कटुता पैदा हो रही होगी ! आप अपने मन में कटुता का बीज बो रहे है, ईश्वर उस कटुता के बीज को वृक्ष में बदलने के लिए उस व्यक्ति की व्यवस्था बिगाड़ना शुरू करेगा, जैसे जैसे उस व्यक्ति की व्यवस्था बिगड़ेगी आपकी कटुता नफरत में और नफरत क्रोध में बदलेगा और आप उस व्यक्ति से घृणा करने लगेंगे, ईश्वर यही तो चाहते थे, की आप उस व्यक्ति के लिए जो भावना रखते थे उसमे वृद्धि हो?

उस व्यक्ति के प्रति कटुता रख कर उसका नहीं आप स्वयं अपना काम बिगाड़ रहे है ! अगर आप चाहते है की वो व्यक्ति आपके पैसे समय से लौटा दे तो उस व्यक्ति के प्रति अपने भाव अच्छे रखिये, क्योंकि उस दिन वो तकलीफ में था और आज आप तकलीफ में है ! उस दिन ईश्वर उसकी सुन रहा था आज ईश्वर आपकी सुन रहा है ! उस दिन वो आपके प्रति उदार था आज आपको उसके प्रति उदार होना चाहिए

एक कहानी से इस सिद्धांत को समझिये

एक व्यापारी था, कुछ साल पहले उसे अपने व्यापार से लाखो का फायदा होता था, फिर करोडो का होने लगा और अब अरबो का प्रॉफिट हो रहा है !

एक दिन उस व्यापारी को उसके एक मित्र ने बताया की “आपको जितना प्रॉफिट होता है, आपका अकाउंटेंट पिछले कई सालो से आपके प्रॉफिट का 10% चुरा लेता है, उसे भगा दो”

व्यापारी मुस्कुराया और बोलै “मुझे पता है की वो क्या करता है”

दोस्त बोला “तुम्हे पता है फिर क्यों पाल रखा है ऐसे व्यक्ति को?”

व्यापारी बोला “वो इसलिए चुराता है क्योंकि उसे जरुरत है, और ईश्वर जरूरतमंद के निकट होता है, ईश्वर उसकी प्रार्थना को सुनता है ! मैं जानता हूँ की सालो से वो ईश्वर से प्रार्थना करता है की ईश्वर मुझे मौका दो की मैं व्यापार में होने वाले लाभ का 10% चुरा सकू और मेरा कोई नुकसान ना हो, अब सोचो उसे 10% देने के लिए ईश्वर मुझे 90% देता है तो मैं अपने 90% को देखु या उसके 10% को? अगर मैंने उसे भगा दिया तो उसे 10% नहीं मिलेंगे लेकिन मुझे भी 90% कहा से मिलेगा? आज मुझे जो भी मिल रहा है वो उसके नसीब से ही तो मिल रहा है, फिर मैं उसे क्यों भगाऊ?”

सेठ की भावना देख कर ईश्वर सेठ की सुन रहा है, ईश्वर ऐसे मौके पैदा कर रहा है की अकाउंटेंट 10% चुरा सके लेकिन उसे 10% देने के चक्कर में ईश्वर को उस व्यापारी को 90% देना पड़ रहा है 

अगर आपको अपना धन वापस चाहिए, तो ईश्वर से प्रार्थना कीजिये की “हे ईश्वर, उस व्यक्ति की मदद कर उसे इतना धन दे दीजिये की वो मेरा धन वापस करने में सक्षम हो जाये”

ये आपको तय करना है की आपके लिए अपनी समस्या ज्यादा मायने रखती है या उस व्यक्ति के प्रति घृणा? अगर आपकी समस्या ज्यादा मायने रखती है तो उस व्यक्ति के प्रति प्रेम रखिये, ईश्वर आप दोनों के प्रेम को बढ़ाने के लिए उसे भरपूर मौका देगा की वो आपके पैसे टाइम से लौटा दे जिससे आप दोनों का प्रेम बढे, और अगर आप उसके प्रति घृणा रखेंगे तो ईश्वर उसके सारे मौके ख़त्म कर देगा जिससे वो आपको पैसा ना दे पाए और उसके लिए आपकी घृणा में वृद्धि हो सके 

आशा है आपको “कर्मा” का सिद्धांत समझ आ गया होगा, अब तय आपको करना है की आपको क्या करना है?

“इदमस्तु” आध्यात्मिक गुरु

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